गुरुवार, 6 सितंबर 2007

जुर्म का प्लेटफार्म बनती राजनीति

आजकल अपने देश कि राजनीति का रुख बदला- बदला दिखाई पड़ रहा है। जहाँ कल राजनीति का खेल जुर्म रोकने के लिए खेला जाता था आज वहीँ, राजनीति लोगों को जुर्म का प्लेटफार्म प्रदान कर रही है। राजनीति मे आई इस तब्दीली का दोष हम न तो किसी पार्टी को दे सकते हैं और न किसी नेता के ऊपर ऊँगली उठा सकते हैं। एक ज़माना होता था जब अच्छे व्यक्तित्व वाले लोग लोग राजनीती में उतरते थे और समाज को अपराधिक तत्वों से बचाकर सुरक्षा प्रदान करते थे, लोगों के दिलों मे एक दूसरे के मज़हब के लिए सम्मान पैदा करते थे, ताकि लोगों के दिलों मे एक दूसरे के धर्म के प्रति कोई भेद भाव न हो। लेकिन आज कि राजनीति पुरानी राजनीति से बिल्कुल अलग नज़र आती है। आजकल कि राजनीति मे राजनेता एसी-एसी हरकत करने लगे हैं जिसका हम तुम तो अंदाज़ा भी नही लगा सकते। अब अयोध्या को ही ले लीजिये अलेक्शन में हर बार अयोध्या का मुद्दा उठाया जाता है जिसके चलते न जाने कितने स्थानों पे मज़हब कि आग भड़कती है, और उसी आग में न जाने कितने निर्दोषों कि अर्थी भी जल जाती है। ये अलेक्शन कि आग तो ठण्डी हो जाती है, लेकिन उन निर्दोषों का क्या जो लोग अलेक्शन कि बलि चढ़ जाते हैं , उसमे बच्चे, बूढ़े, जवान सभी शामिल होते हैं, किसी कि गोद उजड़ती है किसी कि माँग का सिन्दूर ।
राजनीति अब एक धंधा बनकर रह गयी है । जिधर नेताओं को फायदा नज़र आता है उधर भागते दिखाई देते हैं । हमारे देश में कई ऐसे नेता भी मौजूद हैं जो किसी न किसी कांड के मुख्य आरोपी हैं। कई बार वे नेता जेल के मज़े भी चख चुके हैं । इन सब के बावजूद उन नेताओं के ऊपर कोई फर्क ही नही पड़ता कुर्सी पर आराम से क़मर लगाकर बैठते हैं। आजकल के नेता राजनीति में आकर शायद ये समझते हैं कि उन्हें जुर्म करने का प्लेटफार्म मिल गया हो। इसकी मुख्य उदाहरण भी बहुत हैं लेकिन मैं यहाँ बयां नही करना चाहता । आज नेता लोग अपनी कुर्सी के चक्कर में न तो समाज का फायदा सोचते हैं और न देश का।
जरा गौर कीजिये कि वो लोग समाज को अपराधों से कैसे रोक सकते हैं जो खुद किसी न किसी अपराध के मुख्य आरोपी हो। ये बात सही है कि जेल जाना तो नेताओं कि फितरत में पहले से ही लिखा है लेकिन आज और कल में फर्क सिर्फ इतना है कि '' कल के नेता जनता के हित में जेल जाते थे, और आज के नेता जनता को लूटने खसोटने, और दंगें करवाने के जुर्म में जाते हैं ''।
आज राजनिती कि छवि इतनी गंदी हो गई है की आज इज्जतदार व्यक्ति राजनीति के नाम से भी खामोश हो जाता है। राजनीति मे उतरने कि बात तो अलग है आज इज्जतदार व्यक्ति वोट डालने तक नही जाता, और उसका वोट कोई और डाल देता है। राजनीति में परिवर्तन कि शायद यह भी एक वजह हो सकती है। जनता भी क्या करे जब हर बार नज़रों के सामने नए चेहरे देखने को मिलते हैं जनता ये तय नही कर पाती कि अपना मतदान किसे दिया जाये अगर हमने जल्द ही आंखें नही खोली राजनेता मिलकर इस देश को दीमक कि तरह खा जायेंगे। अब देखना ये है कि आख़िर राजनीति कब तक माफियाओं का अड्डा बनती रहेगी और नेताओं को जुर्म करने का एक सुरशित प्लेटफार्म प्रदान कराती रहेगी। अगर ये अपराधी शख्सियत वाले लोग बार-बार आते रहें तो देश को अपराधों से कौन बचायेगा, लोगों को सुकून कौन दिलाएगा। इसलिये हमें समझ से काम लेना चाहिऐ और ऐसे लोगों कि मुखालफत करके अपने वोटों का सही इस्तेमाल करना चाहिऐ। और अपने वोट का सही इस्तेमाल करना चाहिऐ क्योंकि हमारा सही डाला गया एक -एक वोट किसी को जीता सकता है। आज कि राजनीति को देखकर मैं अपनी लिखी गई दो पंक्ति यहाँ वयक्त करना चाहता हूँ जो शायद आपके सामने आजकल कि हकीक़त को बयाँ कर दे।

राजनीति लोगों पे अब इल्जाम हो गई,
जनता मेरे भारत कि यूं हैरान हो गई।
हर तरफ ज़ुल्म का सा माहौल बन गया,
यूं राजनीति के चलन कि पहचान हो गई।

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

adab tariq bhai bhut achha kiya jo ye blog banaya hai isse har aadmi ko apni baat kahne ka mauka milega aap bhi bhut achha likhte ho muje aapka hindi bhasha wala lekh bhi bahut achhha laga aur isme to tumne puri haqiqat bayan kar di.

SUHAIL CHURAN
(LUCKNOW)