मंगलवार, 4 सितंबर 2007

भूल रहे हैं हम अपनी राष्ट्रीय भाषा

आजकल कि व्यस्त जिन्दगी में हम अपनी परम्पराओं, अपने कर्तव्यों के साथ-साथ अपनी राष्ट्र भाषा हिंदी को भी भूलते जा रहे हैं और अपने दैनिक जीवन मे हिंदी का बहुत ही कम प्रयोग कर रहे हैं। इसका कारण है विदेशी भाषा को महत्त्व देना और अपने जीवन मे इसका अधिक प्रयोग करना। अब हम अपने बच्चों को हिंदी स्कूलों मे नहीं पढ़ाना नही चाहते क्योंकि हिंदी स्कूलों में पढ़कर हमारा बच्चा ठीक से अंग्रेजी नही बोल पता और आज हर जगह चाहे वो कार्यालय हो, या कोई विद्यालय हो अंग्रेजी का बोलना बहुत जरुरी हो गया है। हिंदी से ज्यादा लोग अपनी जिन्दगी में अंग्रेजी को महत्त्व देने लगे हैं माना कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है लेकिन इसके चक्कर में हमे अपनी राष्ट्र भाषा को तो नही भूलना चाहिऐ।
आज सर्वाधिक पत्र पत्रिकाओं से लेकर समाचार पत्रों तक सभी अंग्रेजी मे ही प्रकाशित होने लगे हैं। यानी हर चीज़ अंग्रेजी मे प्रकाशित होने का चलन सा हो गया है जिससे लोगों को मजबूरन अंग्रेजी सीखनी पड़ रही है क्योंकि जब कोई भाषा बार बार नज़रों के आएगी तो उसका ज्ञान अवश्य ही लेना पड़ेगा। आज लोगों का रुझान हिंदी कि तरफ कम हो रहा है आजकल लोगों ने हिंदी के बीच - बीच में अंग्रेजी के कुछ अक्षर प्रयोग करने शुरू कर दिए हैं जिससे हिंदी कि शुद्धता कम हो रही है। यह भी एक कारण हो सकता है हिंदी को पछाड़ने का। और बाहर कालिजों मे तो दशा इतनी बुरी है कि शिक्षक और शिष्य हिंदी बोलना मानो जानते ही न हों वहां स्टाफ से लेकर सफ़ाई कर्मचारी तक अंग्रेजी मे ही बात करते हैं। जिसके कारण हिंदी मीडियम से आये विधार्थियों को बहुत ही दिक्कतें उठानी पड़ती हैं और पूर्ण रूप से अपनी प्रतिभा को नही दर्शा पाते बहुत से स्कुल और कालेज आपको ऐसे भी मिलेगें जहाँ कैम्पस के अन्दर हिंदी बोलने पर फाईन भरना पड़ता है और बच्चों को शिक्षकों कि डाट खानी पड़ती है। यानी हम अपनी राष्ट्र भाषा जिसे हम सदियों से बोलते आ रहे हैं , के बोलने पर बच्चों को शिक्षक कि डाट खाने पे मजबूर कर रहे हैं। हम भूल गए हैं कि कल इसी भाषा से ''इंकलाब जिंदाबाद'' जैसे नारे लगाए गए थे और आज हम इसी के बोलने पर पाबंदी लगा रहे हैं अपने बच्चों के स्कूलों मे फाईन भर रहे हैं लानत है हम पर। अगर कोई व्यक्ति अंग्रेजी बोलने मे सक्षम नही तो वो अपने आप को अपमानित महसूस कर्ता है अधूरा महसूस करता है हमने इतना सम्मान अंग्रेजी को क्यों दे दिया है जिसकी वजह से हमे नीचा देखना पड़ रह है। क्या हम अपनी भाषा को पिछड़ा हुआ समझ रहे हैं और हम इसे किस नज़रिये से देख रहे हैं ? क्या हमारी नज़रों मे इसकी कुछ कद्र नही है। हमे ये ध्यान नही है शायद कि हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है और राष्ट्र भाषा का मुकाबला कोई भाषा नही कर सकती चाहे वो कोई भी भाषा हो ।
ये हिंदी भाषी नेताओं का ही दम था जो आज हम आज़ाद हुए बैठे हैं और हर काम को अपनी मर्जी से कर सकते हैं। जिस भाषा को उन हिंदी भाषी नेताओं ने आज से लगभग साठ साल पहले इस देश कि सर जामी से उखाड़ फेंका था आज हम खुद उसे अपनी जिन्दगी के अन्दर ला रहें हैं। विदेशी भाषा ने हमारी संस्कृति को भी बहुत प्रभावित किया है कल जहाँ बच्चे सुबह -सुबह उठकर अपने माँ -बाप के चरण स्पर्श करते थे आज वंही गुड मार्निंग और हाय हेलो करते हैं। अगर हमारे देश मे हिंदी कि यही दशा रही तो एक दिन हम इसे अपनी जिंदगी से इसे भूल जायेगें और हमारी आने वाली नस्लें फिर याद ही करेंगी कि हमारी राष्ट्र भाषा हिंदी थी। और उसमे दोष उनका नही हमारा होगा क्योंकि आज हम उन्हें खुद अंग्रेजी बोलने पर विवश कर रहे हैं। इसलिये हमे इस बात पर ध्यान देना होगा कि हमारे बच्चे अंग्रेजी के चक्कर मे कही अपनी राष्ट्र भाषा ना खो बैठें। कहीँ वे अंग्रेजी को अपनी मुख्य भाषा ना बाना बैठें। अगर हम अपनी भाषा बोलने से थोडा भी हिचकिचाये तो या हमने हिंदी बोलने मे दूसरो के सामने शर्म महसूस कि तो वाकई एक दिन हिंदी हमारी जिन्दगी और देश से एक दिन लुप्त हो जायेगी। इसलिए हमे हिंदी अधिक से अधिक अपनी जिन्दगी मे प्रयोग करनी चाहिऐ और अल्लामा इकबाल साहब कि इस पंक्ति को याद रखना चाहिऐ ।
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ता हमारा,
हिंदी हैं हम वतन हैं हिन्दोस्ता हमारा

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

hi tariq bhai kya likha hai bas likhte raho aur badte raho tune jo hamari rshtra bhasha ke baare me likha bilkul sahi likha hai.

rajeev ranjan (bihaar)

dolly ने कहा…

haa main is baat se puri tarah sahmat hu.par isske bhi jimevar hum sabi hai.hamne hi unhe zyada mahatvdiya hai jo english bolte hai or hum hi unke jaisa banne ke liye marte hai .agar hamne bahar ke desho me dekha to wo sabi hindi bolne ke liy utsuk rahete hi.ab ye hum par aata hai ki hum apni aehmiyat ko samjhe.or jis din hmne ye baate samjhi hum khud ko kabi aalag nahi samjhege...