गुरुवार, 21 अगस्त 2008

स्वार्थी होते लोग

समय बहुत ही तेजी से बदल रहा है‚ और समय के साथ – साथ बदलना कोई बुरी बात नही होती लेकिन समाज में इतना बदलना भी अच्छी बात नही, की लोग एक दूसरे के बारे में बिल्कुल सोचना ही बंद कर दें दूसरों को‚ सहारा देना बंद कर दें‚ और एक दूसरे के दर्द को महसूस करना बंद कर दें आज जैसे–जैसे हमारा समाज जाति बंधन‚ परंपराओं‚ और अंधविश्वास को खत्म करके कामयाबी की ओर अग्रसर हो रहा है, वैसे–वैसे लोगों में दूरियां बढ रही हैं लोग “भाईचारा” जैसा शब्द बिल्कुल भूल गये हैं आज इस बदलती दुनिया ने लोगों के विचारों को भी बदल दिया है पहले जहां लोग एक दूसरे के पल – पल की खबर रखते थे आज वहीं लोगों की जिंदगी में पैसे की अहमियत बढ, गई है अच्छा– खासा खाता पीता व्यक्ति भी और अधिक पैसे की चाह में लगा हुआ हैआज लोग ये सोचते हैं की मैं इतना पैसा कमाउं की मेरा पूरी सोसायटी में नाम हो जाये यानि लोग अपनी पहचान इसांनियत दिखाकर नही बल्कि पैसे से बनाना चाहते हैं यह कितनी बड़ी भूल है न लोगों की?
आज लोग इसी उलझन में इतना उलझे हुए है की, समाज तो दूर की बात है वे अपने परिवार के लिए ठीक से वक्त नहीं निकाल पाते बिजनेस के इस युग में जहां लोग विदेश तक की कंपनियों का लाभ–हानि उँगलियों पर याद रखते हैं वहीं वे देश में रह रहे अपने रिश्तेदारों के हाल से अंजान हैं‚ की वे किस हाल में हैं? और रिश्तेदार तो बहुत दूर की बात है लोग अपने बराबर में रहने वाले पड़ोसी तक को नही जानते की वह कौन है? क्या करता है? और किस हाल में है? ये तो बिल्कुल सच बात है की आज हर आदमी दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं, लेकिन इसी तरक्की के साथ उसके अंदर स्वार्थ भी बढ़ता जा रहा है आज इस समाज में हर व्यक्ति पैसा कमाने में मश्गूल है
75 वर्षीय बुजुर्ग अज़ीज़ साहब का कहना है “ पहले लोग भले ही धनीं नही थे मगर लोगों के दिलों में एक दूसरे के लिए मुहब्बत बरकरार थी, लोग एक दूसरे से मिलते रहते थे लेकिन, आज जैसे – जैसे लोगों के पास पैसा बढ, रहा है वैसे – वैसे लोगों के दिलों से मुहब्बत खत्म हो रही है आज हर व्यक्ति पैसा कमाने के चक्कर में स्वार्थी हो गया है” पहले भले ही लोगों के पास कम पैसा था लेकिन एक – दूसरे के प्रति प्रेम था‚ भाई – चारा था लेकिन इस दौलत के नशे में हम सब कुछ भुला रहे हैं कहते हैं “ जब दर्द आंसू बनकर बहता है तो दिल को राहत मिलती है ” लेकिन आज तो लोग एक दूसरे से बोलते भी नहीं, तो अपना दर्द किससे बयां करेगें? हमें चाहिऐ की हम समय निकालकर इस मुहब्बत के सिलसिले को जारी रखें ताकि ऐक दूसरे के सुख दुख का पता चलता रहे हम अपनें अन्दर छिपी भावनाओं को उजागर करना होगा‚ उनमें प्रेम जगाना होगा‚ अपनें अंदर इंसानियत पैदा करनी होगी ताकि एक दूसरे का दर्द बंटता रहे हमें इस बात को दिखाना होगा की जिंदगी में पैसा ही सबकुछ नहीं होता बल्कि सबसे बड़ी अहमियत लोगों के बीच में प्यार की होती है
आज इंसान–इंसान को खुद ही भुला बैठा‚
समाज में आग क्यों पैसे से लगा बैठा?
वो डूब गया था दिल में जो बचा रहा‚
हर कोर्इ इस तूफां में कश्ती गवां बैठा