सोमवार, 1 अक्तूबर 2007

और किसे पीछे करेगें नेता?

कुछ दिन पूर्व ट्वेंटी- २० में विश्व कप जीकर लौटी, भारतीय टीम के स्वागत में भारतीय किर्केट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष शरद पवार ने कोई कसर नही छोड़ी। टीम का पूरा जुलूस निकला गया जो सहारा एअरपोर्ट से शुरू होकर वानखेड़े स्टेड़ियम पर खत्म हुआ जहाँ लाखो लोग अपने चहेते खिलाडियों कि एक झलक पाने के लिए बेताब थे और पहले से वहां मौजूद थे। यानि लोगों ने अपनी ख़ुशी पूरी तरह ज़ाहिर कि जुलूस मे भी लोगों ने बढ़- चढ़ कर हिस्सा लिया। लेकिन बात यहीं पर ख़त्म नही होती राजनेताओं ने यहाँ भी अपना राजनितिक खेल खेला! शरद पवार जी ने अपने सभी कार्यकर्ताओं (राकपां के नेताओं) को स्टेडियम में अगली पंक्ति में बैठाया जबकि असली खिलाड़ियों को उनके पीछे बैठाया गया। भीड़ से खचा-खच भेरे स्टेडियम में लोग अपना सा मुँह लिए खड़े रहे आख़िर और वे किसे देखते? वे देखने क्या आये थे और उन्हें देखना क्या पड़ा?
इस बात से लोगों को बहुत ही अफ़सोस हुआ कि आखिर खिलाड़ियों को पीछे क्यों बैठाया गया और नेता आगे क्यों बैठे । आख़िर और किसे-किसे पीछे करेगी ये राजनीति और राजनेता? शायद वानखेड़े स्टेडियम में खिलाड़ियों का स्वागत नहीं राकांपा के नेताओं का स्टेज शो होगा, जिसके हीरो शरद पवार जी होगें। शायद एसा ही कुछ सोचा होगा शरद पवार जी ने जुलुस तो लोग याद रखेगें ही लेकिन वान्खेदे स्टेडियम को भी लोग नही भुला पायेगें. जो राजनेता स्टेज पर बैठे थे उन्होने दर्शकों कि भावनाओं पर पानी फेर दिया। लोग असली हेरों को ही नही देख पायें।

आजकल कि राजनीति बिल्कुल बेशर्म हो गई है। और राजनेताओं को सिर्फ अपनी कुर्सी का ख़्याल है। चाहे इसके लिए उन्हें किसी को आगे बढाना पडे या किसी को पीछे बैठाना पडे बस इनकी पार्टी चलनी चाहिए।

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